मन को वश में कैसे करें स्वेट मार्टिन के विचार | How to Control Your Mind by Swet Martin
जो व्यक्ति सही ढंग से विचार करते हैं जिन्हें कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध हो चुका है जिन्होंने अपने मन की वृत्तियों को संयत करके अपने वश में कर लिया है दूसरे लोग उनके सहायक भी हो जाते हैं और परिस्थितियां भी उनके अनुकूल हो जाते हैं ।
किसी विद्वान से पूछा- चरित्रवान कौन है
जब उस विद्वान ने कहा "चरित्रवान वह है जिसे यह मालूम है कि वह क्या चाहता है तथा जो मन के कहने में आकर भावनाओं में नहीं रह जाता बल्कि वह हर परिस्थिति में निश्चित सिद्धांतों के अनुरूप ही व्यवहार करता है ।"
उस विद्वान ने चरित्र की जो परिभाषा बताई है वह वास्तव में सत्य है ।
जिस समय आप पर कोई संकट आ पड़े । तब प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति आपको अपने विरोध को ज्यादा दिखाई देता है । जब चारों तरफ संकट के बादल छाए हो और अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा हो । वो समय आपके चरित्र और आत्मविश्वास की परीक्षा का समय है । उस समय यदि आपका अपने मन पर पूरा नियंत्रण है और इच्छाशक्ति दृढ़ है । फौलाद जैसी दृढ़ता है । तो सभी चिंताओं को चुटकियों में समाधान हो जाएगा ।
शक्तिशाली मनुष्य वह नहीं होता जो की शक्ति का प्रदर्शन करता है । बल्कि शक्तिशाली वह होता है जो अपनी परिस्थितियों के कारण अपनी योग्यता, कार्य करने की शक्ति, सफलता की क्षमता और प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करने को दिखा सकता है । सबसे शक्तिशाली वह होता है जो ऐसे कठिन समय में भी अपने चरित्र पर कसौटी पर खरा उतरता है ।
जब आप सुबह सो कर उठते हैं और आपको ऐसा लगता है कि कुछ अप्रिय घटने वाला है तो उस समय आप कमर कसकर दृढ़ निश्चय कर लीजिए कि चाहे कुछ भी हो, जाए आज आपका दिन तो आनंद और उल्लास से भर कर रहेगा । तो कोई भी वैग्निया फिर बाधा आपको विचलित नहीं कर सकेगी । इसका परिणाम यह होगा कि आने वाली असफलता और संकट आपके पास नहीं आएंगे । आपका वह दिन बेकार में खराब नहीं होगा । आप खुद को देखेंगे कि निराशावादी विचारों के कारण निराशा में फंसकर आप जितना काम कर पाते उससे दोगुना काम अवश्य कर पाएंगे ।
यदि आप सफलता प्राप्त करने के लिए अपनी भावनाओं और इच्छा शक्ति को प्रबल बनाना चाहते हैं, तो कुछ बातों को अपने पास भटकने ना दें जैसे कि
- क्रोध
- चिड़चिड़ापन
- ईर्ष्या
- निराशा
- मानसिक खिन्नता और
- चिंता
डॉक्टर जॉन शिंडलर और शिकागो विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के प्रोफेसर रॉबर्ट जे हैविघहर्स्ट जिन्होंने "100 साल तक खुशी से कैसे जिए" नामक पुस्तक मिलकर लिखी है । उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया है कि 35 से 50% लोग इसलिए रोगी हो जाते हैं, क्योंकि वह प्रसन्न नहीं रहते । डॉक्टर शिंडलर ने अपनी पुस्तक "वर्ष में 365 दिन कैसे जिए " उसमें स्वस्थ रहने के लिए प्रसन्नता पूर्वक विचार के महत्व पर प्रकाश डाला है । उन्होंने रोगियों को सुझाव दिया है, कि वह दिन में कुछ क्षणों के लिए अपनी बीमारी, चिंता आदि सब भूलकर केवल खुशी के विचारों में खो जाए और फिर देखिए कि वह कितनी जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं ।
मन की शक्तियों को नष्ट करने वाले यह नकारात्मक भाव देत्य के समान होते हैं ।
शरीर के अनेक अंगों की में घातक विश पैदा होने लगता है । नड नाडियों में तनाव उत्पन्न हो कर उसमें अकडन पैदा होती है । आपको दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए, कि आप क्रोध चिड़चिड़ापन ईष्या को भयंकर शत्रु समझ कर अपने जीवन से बाहर निकाल देंगे ।
जो व्यक्ति इस प्रकार इन पर विजय प्राप्त कर सकता है । वह अपनी इच्छा शक्ति को इतना जरूर बना सकता है कि वह अपने सामान्य कार्य सहज में ही संपन्न कर लेते हैं ।
एक महिला काफी निराश रहती थी । पर जब वह किसी विद्वान के संपर्क में आई, तो उससे प्रेरणा पाकर उसने जीने की एक अलग ही शैली बना ली । अपने जीवन को जिंदादिली से जीने के लिए सबसे पहला और आश्चर्यजनक कार्य उसने यह किया, कि अपने मन को जीवंत विचारों से भर लिया । जिसके फलस्वरूप उसमें उत्साह उत्पन्न हुआ और वह एक बार फिर अपने आप को जीवंत से जीवन से भरा महसूस करने लगी ।
किसी भी कारण से अगर आपका मन खिन्न हो जाए प्रसंता प्राप्त करने के लिए खूब हंसिये और मुस्कुराइए ।जोर जोर से खिल खिला कर हंसने का कोशिश कीजिए । हंसी खुशी की बातें कीजिए । ऐसे लोगों के संपर्क बनाईये जो न केवल खुद ही खुश रहते हो, बल्कि ऐसी बातें भी करते हैं जो दूसरों की प्रसन्नता प्रदान करते हैं । आपके मन में यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए, कि जब घनघोर घटा छाई होती है घने बादल सूर्य के प्रकाश को ढक लेते हैं । तब भी सूर्य अपने प्रचंड तेज से चमकता ही रहता है । पर उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ना ही वह अपनी तेज खो देता है ।
मैंने एक बार बहुत ही खुश रहने वाली महिला को देखा । उसने मुझे बताया कि पहले वह निराश और बहुत ज्यादा उदास रहती थी । पर अभ्यास के द्वारा इस तरह से घातक विचारों को उसने हरा दिया । उसने ऐसे उपाय अपनाएं कि जब भी उसके मन में निराशा होने लगती थी । वह ऐसे विचारों को जागृत कर लेती थी, कि खुश हो जाए ऐसे गीत गाने लगी थी जो उसे बहुत ज्यादा भाते थे । इससे असर यह हुआ कि वह निराशाजनक दौर से बाहर निकल आई ।
रदरफोर्ड ने कहा है कि
"आलस्य का एक मात्र इलाज काम करना है निरंतर काम करना ।"
"स्वार्थ भावना का इलाज है त्याग ।"
"आत्विश्वास का इलाज है दृढ़ विश्वास"
"कायरता का इलाज है जोखिम भरे काम का बीड़ा उठाना और तन मन धन से उस में जुट जाना ।"
हम बुरी भावनाओं का प्रतिरोध मन में अच्छी भावना ही जगह पर ही कर सकते हैं । अगर आपके मन में या फिर मस्तिष्क में अच्छी भावनाएं भर जाएंगे तो बुरी भावनाएं वहां घुस नहीं पाएंगे । आपकी कल्पना शक्ति किसी अप्रिय विचार को हटाकर उसकी जगह पर कोई सुंदर विचार स्थापित करने में सहायक होती है ।
प्रसंता देने वाले विचारों का ही बार-बार मनन करिए । अपने मन में यह विश्वास सुदृढ़ कर लीजिए कि आपका भविष्य बहुत ही आशावादी, उज्जवल और सफल है । नकारात्मक विचार सकारात्मक विचार के उज्जवल प्रकाश में कभी नहीं टिक पाते । जिस तरह से सूर्य का प्रकाश होते ही अंधकार खुद ही नष्ट हो जाता है । नकारात्मक भावनाएं पराजित हो जाती है ।
जो मनुष्य प्रातकाल उठकर मूड़ की बात सोचता है । वह चाहे कितना ही कौशल कार्यकर्ता क्यों ना हो, वह बहुत ज्यादा सराहनीय काम कभी नहीं कर सकता । क्योंकि वह तो मूड का गुलाम है । जो प्रातः काल उठते ही सर्दी अथवा गर्मी को नापने लगता है । और देखने लगता है कि पारा चढ रहा है या उतर रहा है वह भी गुलाम ही है । वह कभी सफलता और प्रसन्नता प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता । इसके विपरीत जो व्यक्ति प्रातः काल उठते ही यह दृढ़ इच्छा शक्ति प्रबल बना लेता है, और विश्वास को दृढ़ रखता है । वह परिस्थिति को नही देखता है बस परिश्रम से काम करता है । उसे कुछ और ही विचार कभी नहीं घेर पाते । उसकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता ।
जब मनुष्य अपने मस्तिष्क विचारों को वश में कर लेता है तभी उन सभी व्यक्तियों से ईर्ष्या करना छोड़ देता है । जिनके महान कार्यों को देख कर कोई पहले कभी चकित हो जाया करता था । क्योंकि तब तक उसमें भी उन सब महान और जटिल कार्यों को करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है । यानि की उसमे स्वयं शक्तियों का इतना अपूर्व भंडार जमा हो जाता है कि वह शांत होकर आत्मविश्वास से भरपूर रहता हुआ निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है ।
जो व्यक्ति सही ढंग से विचार करते हैं जिन्हें कर्तव्य और आकर्तव्य की विवेक बुद्धि प्राप्त हो चुकी है । जिन्होंने अपने मन की इच्छा को संयत करके अपने वश में कर लिया है । दूसरे लोग भी उनके सहायक हो जाते हैं परिस्थितियां भी उनके अनुकूल हो जाते हैं । ऐसे व्यक्तियों के लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं । दृढ़ इच्छाशक्ति वाले बनकर निसंदेह हम भी ऐसे ही बन सकते हैं ।
कहने का तात्पर्य यह है कि यदि अपने मन को काबू में कर के दृढ़ इच्छाशक्ति से हम छोटी मोटी बाधाओं को पूरा करके कार्य करने की विधि बना ले तो हम दुनिया में सफल और महान व्यक्ति बन सकते हैं ।