भारत में परमाणु हमले का बटन किसके पास होता है? In India Who has Access to Nuclear Button

भारत में परमाणु हमले का बटन किसके पास होता है? In India Who has Access to Nuclear Button

उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच परमाणु बटन की धमकियों से इस प्रश्न का जन्म हुआ कि क्या भारत के प्रधानमन्त्री की टेबल पर भी परमाणु बटन होता है और क्या परमाणु हमला सिर्फ चुटकी बजाते ही किया जा सकता है.
आइये इस लेख में जानते हैं कि परमाणु हमले के लिए किस प्रकार की प्रक्रिया अपनायी जाती है और इसमें कितना समय लगता है.
परमाणु मामलों के विशषज्ञों के अनुसार, प्रधानमंत्री की टेबल पर ऐसा कोई बटन परमाणु बटन नही होता है जिसे दबाकर किसी भी देश पर परमाणु हमला किया जा सके. लेकिन प्रधानमन्त्री के पास एक स्मार्ट कोड जरूर होता है जिसके बिना परमाणु बम को छोड़ा नही जा सकता है. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि किसी देश पर परमाणु हमले के लिए एक पूरा प्रोसीजर होता है. ऐसा बिलकुल नही है कि प्रधानमन्त्री ने कहा कि किसी देश पर परमाणु हमला कर दो और वैज्ञानिकों ने तुरंत हमला कर दिया.
परमाणु हमले का आदेश कौन दे सकता है?
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि परमाणु बम छोड़ने के लिए प्रधानमन्त्री के पास सिर्फ एक स्मार्ट कोड होता है. परमाणु बम को दागने का असली बटन तो परमाणु कमांड की सबसे निचली कड़ी या टीम के पास होता है जिसे वाकई में यह मिसाइल दागनी होती है.
यह भी सच है कि भारत में परमाणु हमला करने के निर्णय सिर्फ प्रधानमन्त्री के पास होता है. हालाँकि प्रधानमन्त्री  अकेले निर्णय नही ले सकता है, उसे परिस्थितियों के अनुसार अपनी सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, चेयरमैन ऑफ़ चीफ ऑफ़ स्टाफ कमेटी से राय लेकर ही परमाणु हमला करने का निर्णय ले सकता है.

रमाणु हमला करने की पूरी प्रक्रिया क्या है?
चरण 1. परमाणु ब्रीफकेस
प्रधानमन्त्री के साथ हमेशा एक सिक्यूरिटी गार्ड चलता है जिसके पास एक ब्रीफकेस जैसा बॉक्स होता है इसे परमाणु ब्रीफकेस कहा जाता है. इसका वजन लगभग 20 किलो होता है. इसमें कंप्यूटर और रेडियो ट्रांसमिशन उपकरण आदि सामान होता है और यह बुलेट प्रूफ भी होता है. इस ब्रीफकेस में उन ठिकानों की जानकारी भी होती हैं जहाँ पर परमाणु हमला करना होता है. अभी तक लगभग 5000 ठिकानों की पहचान की जा चुकी है और समय-समय पर इनकी समीक्षा करके इसमें नए ठिकानों को जोड़ा जाता है.
चरण 2. स्मार्ट कोड
प्रधानमंत्री के पास एक स्मार्ट कोड होता है. यह कोड परमाणु हमला करने के लिए वेरिफिकेशन कोड के रूप में परमाणु कमांड को भेजा जाता है. भारत में प्रधानमन्त्री के पास यह अधिकार होता है कि वह इस कोड का नाम अपने मन मुताबिक रख सके.
चरण 3. दो अन्य सेफ कोड
प्रधानमन्त्री के स्मार्ट कोड के अलावा दो अन्य कोड होते हैं, जो कि लॉकर में बंद होते हैं और ये कहाँ रखे हैं इन्हें हर कोई नही जानता है. सेना में परमाणु बैटरी यूनिट वायुसेना के कमांडिंग ऑफिसर से साथ दो अन्य अधिकारी होते हैं इनके पास अलग - अलग  लॉकर होते हैं. इन्हें सेफ कोड कहते हैं. ये सेफ कहाँ रखे गए हैं इसका पता सिर्फ कुछ अफसरों को ही होता है. इन सेफ़ों को रखने की जगह को समय समय पर बदल दिया जाता है.
चरण 4. मैच कोड या परमाणु हमले की तैयारी
प्रधानमन्त्री का स्मार्ट कोड मिलने के बाद कमांडिंग ऑफिसर दोनों साथी अधिकारियों को यह कोड बताता है जो अपने-अपने सेफ कोड खोलकर उसका मिलान करते हैं. यदि तीनों कोड सही पाए जाते हैं तो परमाणु हमला कर दिया जाता है

क्या प्रधानमन्त्री का स्मार्ट कोड मिलने के बाद तुरंत हमला हो जाता है?
नही ऐसा नही होता है. क्योंकि हवाई हमले के लिए लड़ाकू विमान को तैयार करना या थल सेना बैटरियों और नौसेना द्वारा मिसाइलों को दागने की तैयारी में 35 से 40 मिनट तक का समय लग सकता है.
देश का रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन (DRDO), पानी के भीतर परमाणु पनडुब्बी में नेटवर्क, परमाणु हमला करने के सक्षम वायुयानों और हवाई अड्डों पर कंप्यूटर और नेटवर्क से सम्बंधित पूरी जिम्मेदारी संभालता है. 
उम्मीद है कि इस लेख को पढने के बाद अब आपको पता चल गया होगा कि किसी देश पर परमाणु हमला सिर्फ चुटकी बजाते नही किया जा सकता है. इसके लिए पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है, अधिकारियों के साथ सामंजस्य बैठाया जाता है और तकनीकी तैयारी भी करनी पड़ती है.
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बोर्ड रिज़ल्ट आने तक कैसे बचें उसके तनाव से | How to Deal With Stress Over Exam Results

बोर्ड रिज़ल्ट आने तक कैसे बचें उसके तनाव से | How to Deal With Stress Over Exam Results

How to deal with stress over exam results

एग्जाम का टाइम एक ऐसा समय होता है, जब छात्रों के साथ-साथ अभिभावक भी परीक्षा का दबाव महसूस करने लगते हैं. अक्सर बच्चों को सबसे आगे देखने या कॉम्पिटिशन करने के चक्कर में अभिभावक बच्चों पर तनाव देना शुरू करने लगते हैं. परीक्षा के समय कॉम्पिटिशन की यह भावना कुछ हद तक अच्छी हो सकती है परन्तु हद पार होने पर यह पेरेंट्स और उनके बच्चों के लिए तनाव का कारण बन जाती है. विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ हद तक अभिभावक जाने-अनजाने बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव बनाते हैं, जिसकी वजह से वे तनाव का शिकार हो जाते हैं. अब समय जागरूक होने और यह जानने का है कि अभिभावक बोर्ड रिज़ल्ट आने से पहले बच्चों के तनाव कम करने में कैसे सहायता कर सकते हैं.
  • जब परिक्षा के परिणाम आने वाले हों तो अभिभावकों को चाहिये कि वे बच्चे के साथ नरमी बरतें. उसके साथ खड़े हों और कहें कि किसी भी परीक्षा का परिणाम जिंदगी से बड़ा नहीं होता है, हमेशा आगे के बारे में सोचने के लिए परोत्साहित करें। अपने बच्चे को समझाएं की ऐसे रास्तों के बारे में सोचो, जो तुम्हें बेहतर कल की ओर ले जायें। क्योंकि अगर परिणाम खराब भी आए तो जितना समय तुम खराब परिणाम से दुखी, निराशा तथा अवसाद को हावी होने देने में व्यर्थ करोगे, उतने समय में तुम आगे बहुत कुछ बेहतर कर सकते हो. हार के बाद भी जीत संभव है, बशर्ते अगर आप अपनी गलतियों को सुधार कर आगे बढ़ने की कोशिश करें.
  • इस साल के दसवीं-बारहवीं के रिजल्ट के साथ ही साथ आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षाओं के परिणाम भी आने शुरू हो जायेंगे. ऐसे में ज़रूरी है कि अभिभावक हर हाल में अपने बच्चे के साथ खड़े रहें। बच्चे को रिजल्ट अच्छा न आने पर डांट कर demotivate करने की बजाय, इसके कारण को जानने की कोशिश करें और बच्चे को मोटिवेट करें और भावनात्मक सहारा दें.
  • बच्चो पर अच्छे नंबर लाने का दबाव कभी न बनाये: एग्जाम के समय पहले से ही बच्चे के मन में यह तनाव रहता है कि उसे अच्छे नंबर से पास होना है. ऐसे में यदि अभिभावक भी बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का प्रेशर देते रहें तो इस परिस्तिथि में बच्चे तनाव में आ ही जाते है. इसीलिए अभिभावकों को अपने बच्चों पर अपनी मर्जी नहीं थोपनी चाहिए.
  • आशावादी सोच अपनाये: आशावादी सोच हमारे अन्दर एक नयी स्फूर्ति पैदा करती है इसलिए एग्जाम से पहले अपने रिज़ल्ट के बारे में अच्छा सोचें और उसे एन्जॉय करे.
  • सकारात्मक सोच रखें: परीक्षा के समय पर Positive Thinking रखना बहुत ही आवश्यक होता है. अगर हम अच्छा सोचते है तो अच्छा होता है और वही बुरा सोचते है तो बुरा होता है. इसलिए पॉजिटिव सोच रखना बहुत जरुरी है. यह आपको Negative Thoughts से तो बचाएगा ही साथ ही साथ आपको तनाव से भी दूर रखेगा.
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पढ़ाई में कैसे मन लगाएं | Tip For Study- How to Get Motivated to Study

 पढ़ाई में कैसे मन लगाएं | Tip For Study- How to Get Motivated to Study
Tips To Improve Your Study MotivationUP Board कक्षा 10वीं तथा 12वीं के एग्जाम ख़तम हो चुकें हैं. कक्षा 10वीं के छात्र अब 11वीं कक्षा में जाएंगे तो 12वीं के छात्र कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में जाएंगे. अक्सर छात्र एग्जाम के बाद जब एक कक्षा आगे बढ़ते हैं तो उनके मन में एक विचार ज़रूर आता है कि इस बार और अच्छी तरह पढ़ाई करेंगे या शुरू से ही अपने पढ़ाई पर पूरा ध्यान रखेंगे. ठीक इसी प्रकार कुछ ऐसे भी छात्र हैं जो इस दुविधा में होते हैं कि वह अब अपने न्यू सेशन में पढ़ाई में कैसे मन लगाएं?
दरअसल कुछ ऐसे भी छात्र हैं जिनको पढ़ाई में कुछ खास रूचि नहीं होती लेकिन करियर में आगे बढ़ने के लिए आपकी शिक्षा बहुत अहमियत रखती है. आज हम आपको कुछ ऐसे ही खास टिप्स बताने जा रहें हैं जिन्हें आपको रोज फॉलो करना है अर्थात यदि आप इन टिप्स को अपने रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाते हैं तो यकीन मानिये कि आपकी रूचि पढ़ाई के तरफ धीरे-धीरे शत प्रतिशत बढ़ने लगेगी.
1.पढ़ने के लिए टाइम टेबल ज़रूर बनाये:
जब आप स्कुल जाते हैं तो वहाँ आपको टीचर कक्षा में पढ़ाने आते हैं. उनकी एक समय सारणी होता है जिसे हम टाइम टेबल भी कहते हैं. इस समय सरणी के अनुसार ही वह पढ़ाया करते हैं. अर्थात उसी टाइम टेबल के अन्दर आप अपने टीचर से रोज़ाना पढ़ते हैं तथा आप उस समय सरणी के बिलकुल अनुकूल हो चुके रहते हैं ठीक इसी प्रकार आपको भी अपने स्टडी के लिए एक समय सरणी बनाना है और इसी समय सारणी को आपको रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाना है जब आप एक टाइम टेबल को अपने डेली रुटीन में फॉलो करने लगेंगे तो आपको इसके कई लाभ दिखेंगे.
सबसे अहम बात जो आपको ध्यान रखना है वह यह है कि शुरुवात में आपको ज्यादा देर तक पढ़ाई नहीं करनी है क्यूंकि अभी आपको पढ़ाई में कुछ खास रूचि नहीं होती है और आपने अभी-अभी पढ़ने के लिए खुद को तैयार किया है तो आपको शुरुवात में एक दिन में सिर्फ 1 या 2 घंटे पढ़ना है ऐसा करने से आपका पढ़ाई में मन लगने लगेगा, धीरे-धीरे आप इस समय अवधि को बढ़ाना शुरू करें लेकिन याद रखें शुरुवात में आपको ये गलती नहीं करनी जो अधिकतर छात्र करते हैं, वे शुरुवात से ही 4-5 घंटे पढ़ने लग जाते हैं जबकी आपको इतने देर तक पढ़ने की आदत नहीं है फिर भी आप पढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं  अर्थात ऐसे में आपको कुछ समझ नहीं आएगा और आपने जो पढ़ा है वो भी कुछ हद तक व्यर्थ जायेगा.
टाइम टेबल बना कर पढ़ने के फायदे :
1. जब आप टाइम टेबल बना कर पढेंगे तो आपको पता होगा की किस समय क्या पढ़ना है.
2. टाइम को मैनेज कर पाएंगे
2.ग्रुप स्टडी पर ज़ोर दें:
अगर आपको पढ़ाई करने का बिलकुल भी मन नहीं करता है तो आप ग्रुप स्टडी यानि की अपने दोस्तों और क्लास मेट के साथ बैठ कर पढ़ने की कोशिश करें ऐसा करने से जब आप पढ़ने बैठेंगे तो आप बोर नहीं होगे क्योंकी आपके साथ आपके क्लास मेट अर्थात दोस्त होंगे. जब हम ग्रुप स्टडी करते हैं तो कई बार दोस्तों को कोई टॉपिक समझाने में खुद के भी उस टॉपिक से जुड़े प्रश्न हल हो जाते हैं. साथ ही साथ यदि आपको कोई टॉपिक कक्षा में ठीक समझ नहीं आया या किसी कारण-वश आप कक्षा में नहीं थे तो वह टॉपिक आप बड़ी आसानी से अपने दोस्त से समझ सकते हैं. ग्रुप स्टडी से भी आपको कई फायदे हैं.
ग्रुप स्टडी करने के फायदे:
1.पढ़ते वक्त कभी बोर नहीं होंगे.
2. जल्दी समझ में आएगा.
3. प्रॉब्लम शेयर और डिसकस कर सकते हैं.
3.हमेशा नोट्स बना कर पढ़ें:
जब भी आप पढ़ने बैठें तो याद रखें जो भी आपने पढ़ा है उसके नोट्स भी तैयार करते जाएँ. आपके पढ़े हुवे टॉपिक के सभी पॉइंट्स जब आप अपने नोट्स में लिखते हैं तो वह और ज्यादा अच्छी तरह आपको याद रहता है अर्थात यही स्टडी नोट्स आपको एग्जाम के समय काफी मददगार साबित होंगे. अगर आप बाद में पढ़े हुवे टॉपिक से कुछ भूल जाते हैं तो आप अपने बनाये नोट्स से देख कर आसानी से समझ सकते हैं और इससे आप पढ़े हुवे टॉपिक को कभी भी आसानी से दोहरा सकते हैं.
नोट्स बना कर पढ़ने के फायदे:
1. रिवीजन के लिए बेस्ट होता है.
2. एग्जाम में मदद करता है.
3. टाइम बचाता है.
4.पढ़ाई के लिए सही जगह का चुनाव:
अगर आप घर में पढ़ने के लिए एक फिक्स जगह का चुनाव कर लें तो ये आपके लिए बेस्ट होगा लेकिन वह जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ आपको कोई डिस्टर्ब न करे. जहाँ आप इत्मिनान से पढ़ सकें. यदि आप रोज अपने पढ़ने की जगह बदलते रहते हैं तो इससे आपको पढ़ने का मन नहीं करेगा. क्यूंकि अलग-अलग जगह पर पढ़ाई करने के कारण आपको अधिकतर समय कुछ न कुछ काम से उठना पड़ेगा. जगह सुनिश्चित रहने पर ऐसी परेशानी का सामना कम करना पड़ता है और आप ज्यादा एकाग्रता के साथ पढ़ाई कर सकेंगे.

5.पढ़ाई का सारा सामान पढ़ते वक्त अपने पास रखें:
जब भी आप पढ़ने के लिए बैठें तो उससे पहले आपको पढ़ाई के लिए जीन चीजों की आवश्यकता है, जैसे की किताब, कॉपी, पेन, पेंसिल, पानी इत्यादि सब लेकर पढ़ने बैठें. क्यूंकि इससे आपको बार-बार चीजों के लिए उठने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. दरअसल आप जितनी बार पढ़ते समय किसी भी प्रकार के काम के लिए उठेंगे उतनी बार आपको वापस से पढ़ाई शुरू करने में एकाग्रता की ज़रूरत पड़ेगी, जिस कारण कई बार छात्र बोर होकर पढ़ना ही नहीं चाहते हैं.

निष्कर्ष:

तो ये थे कुछ ख़ास टिप्स जिन्हें यदि छात्र अपने दिनचर्या में अपनाए, जैसे की पढ़ने के लिए अपना एक टाइम टेबल बनाना, ग्रुप स्टडी, नोट्स बनाना, पढ़ाई के लिए एक सही जगह का चुनाव करना, रोज उसी जगह पर पढ़ने की कोशिश करना, पढ़ने का सारा सामान साथ रखना इत्यादि. ये सभी टिप्स आपके लिए बहुत मददगार साबित होंगी. 
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दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में प्रवेश के फायदे और नुकसान | ओपन लर्निंग स्कूल (डीयू SOL)

दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में प्रवेश के फायदे और नुकसान | ओपन लर्निंग स्कूल (डीयू SOL)
Things to Know before DU SOL Admissions
SOL स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू SOL)को दर्शाती है. SOL के तहत, छात्रों को DU के नियमित छात्रों जैसी कक्षाओं में भाग लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. SOL छात्र अपने आवंटित अध्ययन केन्द्रों पर केवल सप्ताहांत (weekend) पर क्लासेज ले सकते हैं. DU SOL उन छात्रों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो किसी कारण वश डीयू या किसी अन्य नियमित कॉलेज या विश्वविद्यालय के नियमित डिग्री में प्रवेश नहीं ले सके.
इस लेख में, हम डीयू स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के फायदे और नुकसान दोनों के बारे में चर्चा करेंगे अर्थात जो छात्र डिस्टेंस लर्निंग में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं वे इन कारकों पर विचार कर अपना करियर चुनाव कर सकते हैं.
तो आइये पहले जानते हैं कि ओपन लर्निंग स्कूल (डीयू SOL) के फायदे क्या हैं:
1. अतिरिक्त समय का सही उपयोग: जहां नियमित डिग्री के छात्र रेगुलर क्लास, एग्जाम, प्रोजेक्ट्स में व्यस्त रहते हैं वहीँ SOL छात्र productive चीजों में शामिल होने के लिए अपना समय उपयोग कर सकते हैं जैसे सीए(CA), सीएस(CS) जैसे पेशेवर पाठ्यक्रमों में प्रवेश करना, एसएससी(SSC), डिफेन्स, बैंकिंग जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी आदि. आम तौर पर, सरकारी नौकरियों की तैयारी में लगे  उम्मीदवार डिस्टेंस मोड में डिग्री हासिल करना ज्यादा तर पसंद करते हैं ताकि वह अपना बाकि का समय अपनी तैयारी पर दे सकें.
2. स्व-मूल्यांकन(Self Appraisal): डिस्टेंस मोड में स्नातक की डिग्री कर रहे छात्रों को परीक्षाओं और असाइनमेंट के लिए खुद ही अपनी तैयारी पर ध्यान देना पड़ता है. वे अध्ययन केंद्रों (study centres) पर शिक्षकों से मार्गदर्शन तो ले सकते हैं लेकिन उनके पाठ्यक्रमों और परीक्षाओं को कवर करने के लिए स्वयं पर निर्भर होना बेहद ज़रूरी होता है जिस कारण वह नियमित छात्र की तरह किसी पर निर्भर नहीं होते अर्थात इससे उनके ज्ञान और शैक्षणिक कौशल में ही बढ़ोतरी होती है.
3. स्किल्स डेवलपमेंट पर फोकस: अतिरिक्त कौशल(additional skills) विकसित करने के लिए छात्र व्यावसायिक पाठ्यक्रमों या भाषा पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं. ये अतिरिक्त कौशल रोजगार के अवसरों और भविष्य में एक सफल कैरियर को बढ़ावा देगा.
4. attendence को लेकर कोई चिंता नहीं: जहाँ नियमित डिग्री के छात्रों को 75% उपस्थिति मानदंड पूरा करना आवश्यक होता है वहीँ SOL छात्रों के लिए attendence के ऐसे किसी मानदंड को पूरा करना ज़रूरी नहीं होता है. SOL छात्रों को किसी भी प्रकार की रेगुलर क्लास जाना आवश्यकता नहीं होता है तथा उनकी उपस्तिथि सप्ताहांत कक्षाओं में भी आवश्यक नहीं.
5. कोई द्वि-वार्षिक (bi-annual) परीक्षा नहीं: नियमित छात्रों की तरह DU SOL छात्रों को परीक्षाओं के लिए प्रत्येक सेमेस्टर में उपस्थित नहीं होना पड़ता है क्योंकि SOL की वार्षिक परीक्षा प्रक्रिया होती है.SOL स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू SOL)को दर्शाती है. SOL के तहत, छात्रों को DU के नियमितछात्रों जैसी कक्षाओं में भाग लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. SOL छात्र अपने आवंटित अध्ययन केन्द्रों पर केवल सप्ताहांत (weekend) पर क्लासेज ले सकते हैं. DU SOL उन छात्रों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो किसी कारण वश डीयू या किसी अन्य नियमित कॉलेज या विश्वविद्यालय के नियमित डिग्री में प्रवेश नहीं ले सके.
इस लेख में, हम डीयू स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के फायदे और नुकसान दोनों के बारे में चर्चा करेंगे अर्थात जो छात्र डिस्टेंस लर्निंग में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं वे इन कारकों पर विचार कर अपना करियर चुनाव कर सकते हैं.
तो आइये पहले जानते हैं कि ओपन लर्निंग स्कूल (डीयू SOL) के फायदे क्या हैं:
1. अतिरिक्त समय का सही उपयोग: जहां नियमित डिग्री के छात्र रेगुलर क्लास, एग्जाम, प्रोजेक्ट्स में व्यस्त रहते हैं वहीँ SOL छात्र productive चीजों में शामिल होने के लिए अपना समय उपयोग कर सकते हैं जैसे सीए(CA), सीएस(CS) जैसे पेशेवर पाठ्यक्रमों में प्रवेश करना, एसएससी(SSC), डिफेन्स, बैंकिंग जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी आदि. आम तौर पर, सरकारी नौकरियों की तैयारी में लगे  उम्मीदवार डिस्टेंस मोड में डिग्री हासिल करना ज्यादा तर पसंद करते हैं ताकि वह अपना बाकि का समय अपनी तैयारी पर दे सकें.
2. स्व-मूल्यांकन(Self Appraisal): डिस्टेंस मोड में स्नातक की डिग्री कर रहे छात्रों को परीक्षाओं और असाइनमेंट के लिए खुद ही अपनी तैयारी पर ध्यान देना पड़ता है. वे अध्ययन केंद्रों (study centres) पर शिक्षकों से मार्गदर्शन तो ले सकते हैं लेकिन उनके पाठ्यक्रमों और परीक्षाओं को कवर करने के लिए स्वयं पर निर्भर होना बेहद ज़रूरी होता है जिस कारण वह नियमित छात्र की तरह किसी पर निर्भर नहीं होते अर्थात इससे उनके ज्ञान और शैक्षणिक कौशल में ही बढ़ोतरी होती है.
3. स्किल्स डेवलपमेंट पर फोकस: अतिरिक्त कौशल(additional skills) विकसित करने के लिए छात्र व्यावसायिक पाठ्यक्रमों या भाषा पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं. ये अतिरिक्त कौशल रोजगार के अवसरों और भविष्य में एक सफल कैरियर को बढ़ावा देगा.
4. attendence को लेकर कोई चिंता नहीं: जहाँ नियमित डिग्री के छात्रों को 75% उपस्थिति मानदंड पूरा करना आवश्यक होता है वहीँ SOL छात्रों के लिए attendence के ऐसे किसी मानदंड को पूरा करना ज़रूरी नहीं होता है. SOL छात्रों को किसी भी प्रकार की रेगुलर क्लास जाना आवश्यकता नहीं होता है तथा उनकी उपस्तिथि सप्ताहांत कक्षाओं में भी आवश्यक नहीं.
5. कोई द्वि-वार्षिक (bi-annual) परीक्षा नहीं: नियमित छात्रों की तरह DU SOL छात्रों को परीक्षाओं के लिए प्रत्येक सेमेस्टर में उपस्थित नहीं होना पड़ता है क्योंकि SOL की वार्षिक परीक्षा प्रक्रिया होती है.
What Is Nios?
In this video we will discuss about National School of Open Schooling (NIOS) and more about that who has started the NIOS, What is purpose behind NIOS?
6. डिग्री मान्यता नियमित पाठ्यक्रम के बराबर: इन दिनों, किसी भी इंटरव्यू के दौरान नियोक्ता यह नहीं देखते हैं कि छात्र नियमित डिग्री से पास है या डिस्टेंस लर्निंग से छात्र ने अपनी पढ़ाई पूरी की है. इंटरव्यू के दौरान छात्र के शैक्षिक रिकॉर्ड, योग्यता तथा उनके स्किल्स के बलबूते पर न्युक्ति होती है.
7. कक्षा 12 में कम प्रतिशत होने पर भी समय की बचत: दिल्ली विश्वविद्यालय में नियमित डिग्री कोर्स में दाखिला लेने के लिए, छात्रों को कटऑफ के सभी मानदंडों को पूरा करना पड़ता है और आवेदकों की बड़ी संख्या के कारण, हर साल कट ऑफ वास्तव में उच्च स्तर पर जाता है ऐसे में छात्रों को अपना साल बर्बाद भी करना पड़ जाता है लेकिन SOL में इस तरह की किसी परेशानी का सामना छात्रों को नहीं करना पड़ता है. वह बड़े आसानी से SOL में दाखिला ले आगे की पढ़ाई शुरू कर सकते हैं.
स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के नुकसान:
1. कोई नियमित कॉलेज लाइफ नहीं: डिस्टेंस डिग्री में डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को नियमित कॉलेज जीवन का आनंद लेने का मौका नहीं मिलता है. वे कॉलेज के इवेंट्स, वार्षिक उत्सव या नियमित डिग्री छात्रों की तरह कॉलेज में होने वाले अन्य गतिविधियों में भाग लेने में सक्षम नहीं हो पाते हैं.
2. कोई सलाहकार नहीं: SOL छात्रों को नियमित छात्रों की तुलना में कॉलेज संकाय सदस्यों से मदद नहीं मिल पाती है अर्थात उन्हें अपने acadmics से जुड़े सभी चीजों के लिए खुद पर ही निर्भर रहना पड़ता है.
3. कैरियर मार्ग का आभाव: नियमित छात्र कॉलेज में पारस्परिक कौशल (interpersonal skills) आसानी से  विकसित कर सकते हैं क्योंकि वे सहपाठियों, संकाय और कोल्लेगे में होने वाले अन्य गतिविधियों में भाग लेते रहते हैं. जबकि SOL के छात्र इस प्रकार की उपलब्धियों से वंचित रहते हैं.
4. बेरोजगारी की संभावना: जहां नियमित डिग्री के छात्रों को असीमित अवसर मिलते हैं वहीँ डिस्टेंस लर्निंग के छात्रों ने यदि उच्च शिक्षा को प्राप्त कर ली है लेकिन उन्हें कोई व्यावसायिक कौशल की कोई जानकारी नहीं है तो उनके रोजगार की संभावनाएं काफी सीमित हो जाती है.
निष्कर्ष:जो छात्र DU SOL से हायर एजुकेशन प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें कॉलेज में एडमिशन लेने से पहले उपर्युक्त कारकों पर विचार करना ज़रूर चाहिए तथा इन कारकों को ध्यान में रखते हुवे अपने सुविधा के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए.
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Solve Any Numerical in Just 5 Minutes follow Seven Steps

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How to Solve Difficult Numerical Problems

प्रतियोगी परीक्षा और बोर्ड परीक्षा में अक्सर विद्यार्थियों को न्यूमेरिकल प्रश्नो से दो चार होना पड़ता है l  न्यूमेरिकल सवालों को हल करने के लिए ज्ञान और कौशल दोनों की ज़रूरत पड़ती है पर इन प्रश्नों को अगर सही तरीके से हल न किया जाए तो भी उत्तर गलत निकल सकता है जिसका नतीजा समय की बर्बादी और एग्जाम में कम स्कोर होता है l अक्सर ऐसा एग्जाम में होता है कि विद्यार्थी को सब कुछ आता है फिर भी वह सही उत्तर नहीं निकाल पाता l इस समस्या का सबसे बड़ा कारण होता है प्रश्न को गलत तरीके से हल करना l
गर न्यूमेरिकल प्रश्नों को हल करने के लिए विद्यार्थियों को दिक्कत आए तो उन्हें हतोत्साह नहीं होना चाहिए क्योंकि यह बहुत आम बात है और यह समस्या निरंतर अभ्यास के माध्यम से ही दूर होगी l आज हम इस आर्टिकल से जानेंगे कि किसी भी न्यूमेरिकल प्रश्न को हल करने का सबसे सही तरीका क्या होता है
1 # सवाल को बिना अच्छी तरह समझे हल करना न शुरू करें
बहुत से छात्रों की यह आदत होती है कि वह सवाल को थोड़ा सा पढ़ते है और अगर उन्हें महसूस होता है कि यह पाठ्यपुस्तक का सवाल है तो वह उस सवाल को तुरंत हल करना चालू कर देते हैं l यह करना बहुत ही गलत है, सबसे पहले पूरा सवाल पढ़ना चाहिए और उसके बाद ही सवाल को हल करना शुरू करना चाहिए l
सवाल में क्या दिया गया है और क्या-क्या पुछा गया है, इन सब बातों को समझे बिना सवाल हल करने पर उत्तर गलत निकलने की संभावना काफी अधिक रहती है l
भौतिकी जैसे विषयों में तो कभी-कभी यूनिट्स में साधारण बदलाव करके पुराना प्रश्न पूछ लिया जाता और ऐसे प्रश्न वहीँ विद्यार्थी गलत करते हैं जो जल्दबाज़ी में बिना ठीक से पढ़े प्रश्न हल करने की कोशिश करते हैं l
2 # प्रश्न में दिए गए महत्वपूर्ण डाटा को हाईलाइट करें या फिर एक जगह लिखें
न्यूमेरिकल प्रश्न को पढ़ते समय हमेशा महत्वपूर्ण कीवर्ड और डाटा को हाईलाइट करना चाहिए l आप चाहे तो कीवर्ड पर स्पेशल सिंबल भी बना सकते है l प्रश्न में क्या दिया गया है और क्या पूछा गया है यह प्रश्न पढ़ते समय ही आपको हाईलाइट कर लेना चाहिए l विज्ञान जैसे विषयों में फिजिकल क्वान्टिटीज़ और उनकी यूनिट्स पर खास ध्यान देना चाहिए l उत्तर जिस यूनिट में निकालना हो कोशिश करें कि सभी फिजिकल क्वान्टिटीज़ की यूनिट्स भी वहीँ हो l
3 # एक रफ़ डायग्राम बनाएं
प्रश्न की ज़रूरत के हिसाब से हमे उसका रफ़ डायग्राम ज़रूर बनाना चाहिए l अगर ऑप्टिक्स से जुड़ा हुआ सवाल हो तो रे डायग्राम बनाए और अगर थर्मोडायनमिक्स से जुड़ा सवाल हो तो इंडिकेटर डायग्राम बनाएं l बोर्ड परीक्षा में तो डायग्राम के भी नंबर होते है, मगर प्रतियोगी परीक्षा में आप चाहे तो अपनी समझ के लिए एक रफ़ डायग्राम बना सकते हैं l
4 # प्रश्न में इस्तेमाल होने वाले सिद्धांतों और अवधारणाओं को पहचानें
बोर्ड परीक्षा में ज़्यादातर सीधे सवाल पूछे जाते हैं जिनमे डायरेक्ट फॉर्मूला अप्लाई हो जाता है l वहीँ दूसरी जगह JEE जैसी प्रतियोगी परीक्षा में ऐसे प्रश्न पूछें जातें हैं जिन्हे हल करने के लिए दो या दो से ज़्यादा कांसेप्ट की जरूरत होती है l इसलिए प्रश्न में इस्तेमाल होने वाले सभी कॉन्सेप्ट्स को पहचानें l 
5 # डाटा को मैथमेटिकल इक्वेशन्स में परिवर्तित करें
प्रश्न में दिए गए महत्वपूर्ण डाटा निकलने के बाद और प्रश्न में इस्तेमाल होने वाले सिद्धांतों और अवधारणाओं को पहचानने के बाद इन सबको मैथमेटिकल इक्वेशन्स में परिवर्तित करें l CBSE जैसे बोर्ड एग्जाम में ये इक्वेशन्स आसान हो सकती है मगर JEE जैसी प्रतियोगी परीक्षा में ये इक्वेशन्स उलझी हुई होती हैं l इसलिए इक्वेशन्स बहुत सावधानी से बनानी चाहिए l
6 # मैथमेटिकल इक्वेशन्स में वैल्यू रखें
मैथमेटिकल इक्वेशन्स बनाने के बाद उसमे सावधानी पूर्वक वैल्यू रखें l वैल्यू रखते समय उनकी यूनिट्स का खास ध्यान रखें l अक्सर छात्र फिजिकल क्वॉन्टिटीज़ की वैल्यू रखते समय यूनिट्स का ध्यान नहीं देते और उनका उत्तर गलत हो जाता है l प्रश्न में कभी-कभी किसी खास यूनिट में उत्तर पूछा जाता है इसलिए इस बात का भी ध्यान रखें l
7 # अंतिम उत्तर को फिर से जांचे
अंत में अगर आपके पास समय हो तो एक बार फिर से अपने उत्तर के हर एक स्टेप की जाँच करें l हो सकता है सवाल हल करते वक़्त अपने गड़ना करने में कोई गलती न कर दी हो l अंत में उत्तर लिखते वक़्त यह भी ध्यान रखें कि प्रश्न के उत्तर की यूनिट भी सही हो और जो प्रश्न में पुछा गया है उसके अनुसार हो l
निष्कर्ष:
प्रारंभ में आपको लगेगा की यह तरीका बहुत मुश्किल है, मगर धीरे-धीरे अभ्यास के बाद आपको यह तरीका आसान लगने लगेगा  और आप चुटकियों में किसी भी सवाल को हल कर लेंगे l
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CBSE Board Exam 2018: How to Refresh Your Mind After Board Exam Best Activities

बोर्ड एग्जाम्स ख़तम होते ही इन बेहतरीन एक्टिविटीज़ से अपने दिमाग को करें रिफ्रेश


आजकल बोर्ड एग्जाम्स के चलते विद्यार्थियों का डेली रूटीन इतना व्यस्त है कि वे अपने शौंक व मनोरंजन के लिए मुश्किल से थोड़ा-बहुत समय निकाल पा रहे हैं. इस समय उनके लिए सबसे ज़रूरी है पढ़ना, और हो भी क्यों ना आखिर बोर्ड एग्जाम्स उनकी पूरे साल की मेहनत का परिणाम दर्शाएंगे. इसमें मिलने वाले अच्छे अंक आगे पढ़े जाने वाले विषय और किसी हद तक उनके भावी करियर को भी प्रभावित करेंगे. लेकिन जैसे ही एग्जाम्स ख़तम होंगे फिर कुछ दिनों के लिए विद्यार्थियों के ऊपर पढ़ने-पढ़ाने का कोई दबाव नहीं होगा. ज़िन्दगी मानो आज़ाद सी लगने लगेगी.
एग्जाम के बाद मिलने वाली छुट्टियाँ विद्यार्थियों को रिजल्ट की चिंता किये बिना कुछ इस तरह बितानी चाहिए कि उनकी शारिरिक व मानसिक थकावट पूरी तरह दूर हो जाए और वे अपने शौक को फिर से एन्जॉय कर सकें. लेकिन यह देखा गया है कि छुट्टियों का एक-डेढ़ हफ्ता बीतते ही विद्यार्थी इस ख़ालीपन से बोर होने लगते हैं. ऐसे में उन्हें किसी ऐसी एक्टिविटी की ज़रूरत महसूस होती है जिससे उन्हें व्यस्त रहने के साथ-साथ कुछ सीखने को भी मिल सके.
इस लेख में हम कुछ ऐसी ही पोस्ट-एग्जाम एक्टिविटीज़ के बारे में बताएंगे, जो विद्यार्थी की छुपी हुई योग्यताओं और क्षमताओं को बाहर निकालकर उन्हें निखारने में मदद करेंगी और साथ ही विद्यार्थी को मनोरंजन का भी अनुभव करवाएंगी:
1. अपनी निजी इच्छाओं को पूरा करने का यह सबसे उचित समय होगा
हर विद्यार्थी के मन में किसी ना किसी चीज़ को सीखने की चाह होती है जिसे वह स्कूल, ट्यूशन आदि की व्यस्तता के चलते पूरा करने में असमर्थ रहते हैं. लेकिन एग्जाम के बाद मिलने वाली छुट्टियों में ना तो कोई स्कूल या कोचिंग क्लास होगी और ना कोई होमवर्क या प्रोजेक्ट वर्क का बोझ होगा. यह समय आपके शौक के पूरा करने के लिए बिलकुल परफेक्ट होगा. बस ज़रूरत है तो अपने छुपे टैलेंट को पहचानने की और उसे निखारने की. चाहे बात हो अपनी आवाज़ को मीठे सुरों में ढालने की, अपने थिरकते क़दमों को डांसिंग मूव्स में बदलने की, नई भाषा सीख कर अपने रिज्यूमे को आकर्षक बनाने की, आप अपनी हर रूचि या शौक को पूरा करने के लिए आने वाली छुट्टियों में ज़रूरी कोचिंग क्लासेज ज़रूर लें और इस बहुमूल्य समय का भरपूर फ़ायदा उठायें.
2. इन छुट्टियों में अपनी हॉबी को दे सकते हैं पर्याप्त समय
पढ़ाई के दबाव के चलते अक्सर छात्रों को अपने शौक व रुचियों को एक किनारे रखना पड़ता है. लेकिन एक बार एग्जाम ख़तम हुए तो आपके पास भरपूर समय होगा अपने शौक व जुनून को पंख लगाने के लिए. फोटोग्राफी, पेंटिंग, गीत, कवितायेँ या कहानियाँ लिखना, मार्शल आर्ट सीखना आदि जैसे अन्य शौक पूरा करने के लिए एग्जाम के बाद मिलने वाली छुट्टियों से बेहतर और कोई समय नहीं हो सकता. आपकी हॉबी आपको अनचाही चिंताओं व तनाव से मुक्ति दिलाते हुए आपमें क्रिएटिविटी व सकारात्मक सोच को बढ़ावा देती है. इसके आलावा यदि थोढ़ा गंभीरता से लिया जाए तो आपकी हॉबी भविष्य में एक बेहतरीन करियर के विकल्प भी प्रदान करवा सकती है.
3. आउटडोर गेम्स खेलकर चिंता व तनाव को दूर भगाएं
अपने साथियों के साथ खेलना-कूदना हर बच्चे को पसंद होता है लिकिन फिर से स्कूल व पढ़ाई के दबाव के चलते बहुत से बच्चों को अपनी पसंदीदा खेल को त्यागना पड़ता है. इम्तिहान ख़त्म होने के बाद साथियों के साथ बहार जाकर अपनी पसंदीदा खेल खेलना छात्रों को असीम सुख का अनुभव करवाता है. दरअसल गेम्स खेलने से हर तरह का स्ट्रेस व टेंशन से तुरंत मुक्ति पाने में मदद मिलती है. आजकल तो खेलों में बेहतरीन करियर विकल्पों को देखते हुए माता-पिता भी अपने बच्चों को विभिन्न खेलों जैसे कि क्रिकेट, टेनिस, स्विमिंग, आदि में एनरोल करवाते हैं. इन सभी आउटडोर गेम्स की एक और खासियत यह भी है कि इससे आपको मानसिक व शारिरिक दोनों रूप में तंदरुस्त रहने में मदद मिलती है.
4. भविष्य के लिए उचित स्ट्रीम पर रिसर्च करें
कक्षा 10वीं और 12वीं दोनों की बोर्ड परीक्षा देने के बाद विद्यार्थी को अपने अकादमिक करियर में नये पड़ाव में कदम रखना होता है जिसके लिए उसे सही स्ट्रीम या विषय का चयन करना होता है. इसी स्ट्रीम के आधार पर छात्र अका भावी करियर निर्भर करता है. इसलिए स्ट्रीम के चुनाव से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय को लेने से पहले छात्र को गंभीर रिसर्च करनी चाहिए. उस स्ट्रीम में पढ़े जाने वाले विषयों, उनका कठिनाई स्तर, उस स्ट्रीम से जुड़े क्षेत्र और उनमे रोज़गार के अवसर, आदि सभी पहलुओं पर गंभीर रिसर्च करने के बाद ही किसी नतीजे पर आना चाहिए. इन सबके लिए बोर्ड एग्जाम्स ख़तम होने के बाद मिलने वाला ख़ाली समय काफी लाभकारी साबित हो सकता है. इस दौरान आप अपने सीनियर्स, टीचर्स व एक्सपर्ट काउंसलर्स से मिलकर उनकी राय ले सकते हैं ताकि अपने अकादमिक करियर के अगले पड़ाव में कदम रखने से पहले एक सीधा व स्पष्ट राह आपके सामने हो.
5. शोर्ट-टर्म जॉब ओरिएंटेड कोर्स में शामिल होकर अपनी लर्निंग को बढ़ाएं
आजकल कई इंस्टिट्यूट ऐसे कोर्स करवाते हैं जिनका अन्तराल केवल एक या दो महीने का ही होता है और जो भविष्य में कोई अच्छी जॉब पाने में आपके लिए काफी फ़ायदेमंद साबित हो सकते हैं. ऐसे कोर्सेज आपकी योग्यताओं में वृद्धि लाते हुए आज के कम्पटीटिव युग में आपको दूसरों के मुकाबले आगे खड़े होने में मदद करते हैं. कुछ बेहतरीन शोर्ट-टर्म कोर्सेज हैं: शोर्ट हैण्ड कोर्स, बेसिक कोर्स इन कंप्यूटर एप्लीकेशन, वेब डिजाइनिंग, वेब प्रोग्रामिंग, कोर्स इन कंप्यूटर लैंग्वेज जैसे कि JavaScript, C, C++, आदि. ये सभी कोर्सेज ना सिर्फ़ आपके रिज्यूमे को आकर्षित बनाते हैं बल्कि आपके दिमाग को लर्निंग एक्टिविटी में व्यस्त रखते हुए इसकी काम करने की क्षमता में भी सुधर लाते हैं.

तो इस बार बोर्ड परीक्षा के बाद मिलने वाली डेढ़ से दो महीने की छुट्टियाँ कुछ इस तरह से बिताएं कि ना सिर्फ़ आप साल भर के स्टडी प्रेशर से मुक्ति पा सकें बल्कि अपने व्यक्तिगत गुणों को निखारने का भी मौका मिले.
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जानिये कैसे चेक होती है बोर्ड एग्ज़ाम की उत्तर पुस्तिका

जानिये कैसे चेक होती है बोर्ड एग्ज़ाम की उत्तर पुस्तिका

CBSE Board की परीक्षा शुरू होने से कुछ दिन पहले पढ़ाई की वजह से नींद पूरी न करना भी गलत. नींद पूरी न होने की वजह से छात्रों में बढ़ता है कंफ्यूजन.

ज़्यादातर 12वीं और 10वीं के विद्यार्थियों को यह नहीं पता होता कि बोर्ड एग्ज़ाम की उत्तर पुस्तिकाएं चेक होने की क्या प्रक्रिया होती होती है l इस जानकारी के अभाव में कुछ विद्यार्थी रिजल्ट आने के बाद अक्सर यह कहते मिल जाते हैं कि बोर्ड रिजल्ट में जितने स्कोर की उन्होंने उम्मीद की थी उससे ज़्यादा मार्क्स आये या कम मार्क्स आये l कुछ विद्यार्थी यह भी शिकायत करते मिल जाते हैं कि उन्होंने सब सही किया फिर भी उनके नंबर कम आये l
आज इस आर्टिकल द्वारा हम जानेंगे कि आखिर बोर्ड एग्जाम में कॉपी किस तरह से चेक होती है और हम ऐसा क्या करें जिससे हमारे ज़्यादा से ज़्यादा मार्क्स आए l
कैसे होता है बोर्ड की कॉपियों का मूल्यांकन
एग्ज़ाम की उत्तर पुस्कतिकाएँ चेक करने के लिए बोर्ड देश भर के केंद्रों में भेजता है और विभिन्न स्कूलों से अनुभवीं शिक्षकों की नियुक्तियां करता है l हर शिक्षक को प्रति कॉपी के हिसाब से रूपया दिया जाता है l
बोर्ड एग्ज़ाम खत्म होने के बाद सभी उत्तर पुस्तिका एकत्रित की जाती हैं और उन्हें विभिन्न केंद्रों (बोर्ड द्वारा चयनित) में चेकिंग के लिए भेजा जाता l
भेजने से उत्तर पुस्तिकाओ से नाम और रोल नंबर वाला पेज हटा दिया जाता है और उसकी जगह एक गुप्त कोड लिख दिया जाता है जिसका पता सिर्फ बोर्ड के स्टाफ को होता है l इस प्रक्रिया द्वारा बोर्ड यह सुनिश्चित करता है कि कॉपी चेक होने के दौरान कोई बेईमानी न हो l
उत्तर पुस्तिकाओ के मूल्यांकन करने वाले हर शिक्षक को एक मार्किंग स्कीम दी जाती है
उत्तर पुस्तिकाओ के मूल्यांकन करने वाले हर शिक्षक को एक मार्किंग स्कीम दी जाती है l इस मार्किंग स्कीम में हर एक प्रश्न के उत्तर के लिए उत्तर संकेत या मूल्य बिंदु (Answer Key or Value Points) मौज़ूद होते है l उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के दौरान जिस उत्तर में ये सारे उत्तर संकेत या मूल्य बिंदु मौज़ूद होते है उस उत्तर को शिक्षक पूरे नंबर देता है l
उत्तर में हर एक स्टेप के होते हैं मार्क्स
CBSE जैसे बोर्ड में हर उत्तर की स्टेप मार्किंग होती है l पूरे नंबर पाने के लिए आपको यह सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि आपने उत्तर में सभी ज़रूरी स्टेप दिए हो और कोई भी महत्वपूर्ण स्टेप आपसे मिस न हुआ हो l
जिस उत्तर में उत्तर संकेत या मूल्य बिंदु (Answer Key या Value Points) का कुछ हिस्सा नहीं होता है तो शिक्षक उस उत्तर में पूरे नंबर नहीं देता भले ही वो सही हो l
यहाँ पर हमने उदहारण के लिए CBSE द्वारा जारी किये गये Class 12 Maths Sample Paper का एक स्नैपशॉट लिया है l उत्तर नंबर 6 को अगर हम ध्यान से देखें तो हमें साफ - साफ पता चल रहा है कि अगर 3 ज़रूरी स्टेप्स (जो लाल, हरे और नीले रंग) अगर आपके उत्तर में मौज़ूद हैं और आपका फाइनल उत्तर भी सही है तो आपको पूरे नंबर मिलेंगे l अगर आपने यह स्टेप्स सही किये हैं मगर अंत में उत्तर गलत दिया है तो आपके कुछ मार्क्स कटेंगे l
उत्तर किस तरह दर्शाया गया हैयह भी है महत्वपूर्ण  
अगर CBSE 12वीं के बोर्ड एग्ज़ाम की बात करें तो करीब 10 लाख विद्यार्थी 12वीं के बोर्ड एग्ज़ाम देते हैं l इसका मतलब बोर्ड के पास दो महीनों से भी कम का समय होता है पूरा प्रोसेस ख़त्म करने के लिए l कॉपी चेक करने वाले शिक्षक को भी प्रति कॉपी चेक करने के हिसाब से रूपया मिलता है l
इसका मतलब इस पूरी प्रोसेस में समय बहुत कम होता है और साथ-साथ कुछ शिक्षक ज़्यादा से ज़्यादा पैसा भी कमाना चाहते हैं l
इसलिए जो विद्यार्थी सही उत्तर शीर्षक, उपशीर्षक बुलेट पॉइंट्स, डायग्राम इत्यादि का इस्तेमाल करके उत्तर लिखते हैं तो उनको पूरे नंबर मिलने की संभावना बढ़ जाती है l
अगर उत्तर में बड़े-बड़े पैराग्राफ होंगे तो शिक्षक को जानकारी ढूढ़ कर निकालनी होगी l इस चक्कर में हो सकता है कि उत्तर में कुछ महत्वूर्ण बिंदु शिक्षक को न मिल पाएं l यह भी हो सकता है कि शिक्षक पूरे नंबर देने की जगह जल्दबाज़ी में औसत नंबर दे l उत्तर किस तरह दर्शाया गया है, यह भी है बहुत महत्वपूर्ण है l
ज़्यादा शब्दों का मतलब ज़्यादा नंबर बिल्कुल नहीं है
कुछ विद्यार्थियों को यह बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी होती है कि हर एक प्रश्न के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लिखो तो पूरे नंबर ज़रूर मिलेंगेl ज़्यादा से ज़्यादा लिखने के चक्कर में ऐसे विद्यार्थियों अक्सर पूरा पेपर हल नहीं कर पाते l
ज़्यादा से ज़्यादा लिखने का कोई फ़ायदा नहीं है l आपको किसी भी उत्तर में पूरे नंबर तभी मिलेंगे जब आपने उस उत्तर के द्वारा कम से कम शब्दों में सही एवं सटीक जानकारी दी होगी l

 अगर आपसे AC Generator का प्रिंसिपल पूछा गया है और यह प्रश्न एक नंबर का है तो आपको सिर्फ और सिर्फ AC Generator का प्रिंसिपल ही लिखना होगा इसके आलावा अगर आप कुछ भी लिख रहें हैं तो आप सिर्फ समय की बर्बादी कर रहे हैं l
सारांश:
अभी तक आपने जाना कि बोर्ड एग्ज़ाम में कॉपी कैसे चेक होती है और कॉपी चेकिंग के दौरान मार्किंग स्कीम कितनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है l अगर आपको जानना है कि काम शब्दों में ज़्यादा से ज़्यादा बेहतर उत्तर कैसे लिखें तो CBSE द्वारा प्रकाशित की गई Marking Scheme देख सकते हैं l सीबीएसई हर साल बोर्ड एग्जाम का रिजल्ट घोषित होने के बाद जो मार्किंग स्कीम बोर्ड कॉपी चेक करने के लिए इस्तेमाल होती हैं उन्हें सार्वजनिक कर देता है l

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